समूची मानवता को एक लड़ी में पिरोने का संदेश है श्री गुरुग्रंथ साहिबजी- सिंघ साहेब ज्ञानी मान सिंघ...खरगोन(ब्यूरो)। स्थानीय गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरुग्रंथ साहिबजी का पहला प्रकाश पुरब हर्षोल्लास के साथ मनाया गया सभा के प्रधान हरचरण सिंह भाटिया, सेक्रेटरी कमलजीत सिंह गांधी ने बताया कि बुधवार रात्री श्री गुरुग्रंथ साहिब जी के पहले प्रकाश पूरब की 420 वीं प्रकाशोत्सव के अवसर पर गुरुद्वारा साहिब में विशेष साज सज्जा की गई, कीर्तन दरबार में सभा के हजूरी जत्थे ज्ञानी पवन सिंह एवं अमृतसर से पधारे ज्ञानी सुखप्रीत सिंह साझ के जत्थे द्वारा गायन की गई गुरबाणी से गुरुद्वारा साहिब हाल गुंजायमान हो उठा। सभा के संरक्षक मंजीत सिंह चावला, मितप्रधान मनवीर सिंह भाटिया ने बताया कि इस अवसर पर दरबार साहिब अमृतसर के साबका ग्रंथी साहिब ज्ञानी मान सिंह विशेष तौर पर उपस्थित हुए जिनका खरगोन की संगत द्वारा भव्य स्वागत किया गया। उन्होंने श्री गुरुग्रंथ साहिबजी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सिक्खों में जीवंत गुरु के रूप में मान्य श्री गुरुग्रंथ साहिबजी केवल सिख कौम ही नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए आदर्श व पथ प्रदर्शक हैं। दुनिया में यह एक पवित्र ग्रंथ हैं जो तमाम तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर आपसी सद्भाव, भाईचारे, मानवता व समरसता का संदेश देते हैं। वर्तमान युग में अगर इनकी बाणियों में छिपे संदेश, उद्देश्य व आदेशों को माना जाए तो समूची धरती स्वर्ग बन जाए।
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सन् 1604 ईसवी में पहली बार हुआ प्रकाश पर्व-
सभा के सेक्रेटरी श्री गांधी द्वारा श्री गुरुग्रंथ साहिबजी के बारे में प्रकाश डालते हुए बताया कि आज का दिन सिख समुदाय के लोगों के लिए बेहद खास है क्योंकि आज ही के दिन सन् 1604 में अमृतसर के हरमंदिर साहिब में पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिबजी की स्थापना की गई थी।श्री गुरु ग्रंथ साहिबजी के नाम से मशहूर इस पवित्र ग्रंथ में आत्मा, परमात्मा का पूजा ज्ञान और गुरु का प्रकाश भरा हुआ है। सिख क़ौम के पांचवें गुरु अर्जुन देवजी ने इस ग्रंथ का संपादन करवाया था आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पवित्र ग्रंथ में केवल सिख गुरुओं के उपदेश नहीं हैं बल्कि दूसरे धर्मों के लोगों की वाणी भी मौजूद है। इस ग्रंथ में जयदेवजी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी के साथ-साथ कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्नाजी की वाणी भी सम्मिलित है। इस पवित्र ग्रंथ में शेख फरीद के श्लोक भी शामिल हैं।1430 अंग (पन्ने) वाले इस ग्रंथ के पहले प्रकाश पर संगत ने कीर्तन दीवान सजाए और बाबा बुड्ढा जी ने बाणी पढ़ने की शुरुआत की। पहले गुरु से छठे गुरु तक अपना जीवन सिख धर्म की सेवा को समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा जी श्री गुरुग्रंथ साहिब जी के पहले ग्रंथी सिंघ साहिबान बने।